१
कब सोचते हैं हम
कि जिस दिन होती है दीवाली
उस दिन, रात होती है पूरी तरह काली
और जिस घर में दिया ना हो
वहां कैसे रहती होगी खुशहाली
२
अमावस्या पहले
एक दिन आती थी
अब संशय का अँधेरा
बढ़ रहा है इतना
की हर दिन अमावस्या है
अन्धकार में जो क्रंदन है
अब हम उसे संगीत कहने लगे हैं
भूल गए हैं बच्चे
की अग्नि जलाती है,
अपने जलने का जश्न मनाते हैं,
मरहम की जगह
खंडित करते तर्कों का लेप लगाते हैं
३
तो अब
जब हर दिन दीवाली सा है
इस तरह कि
फ़ैल रहा है अँधेरे का अधिकार,
हर दिन करनी होगी
लक्ष्मी जी की पुकार
हममें से कुछ को तो दीपक बनने के लिए
होना होगा तैयार
४
पर इस चुनौती का क्या करें
दीपक के नीचे
अँधेरा रह जाता है हर बार,
और किसी असावधान क्षण में
दीपक हो जाता है
अपने साथ पलते
अँधेरे का शिकार
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ६ बज कर ३० मिनट
शुक्रवार, मार्च १२, 2010
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