कैसे देखूं
वहां से
अब तक देखा ही नहीं
जहाँ से
प्रश्न उसके चरणों पर रख कर
जब देखने लग उसका
मुस्कुराता चेहरा
सहसा
प्रश्न में से
निकल आया
एक नया रूप मेरा
२
वो मुझे
प्रेम के शुद्ध उजियारे में
नहला कर नित्य नूतन
कर देता है
अपनी तरह
और फिर
निकल आता हूँ
मैं
जानी पहचानी पगडंडी पर
नए सिरे से
प्यार का उपहार लुटाने
इस तरह
सुन्दर बन जाता है मेरा दिन
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर ५२ मिनट
गुरुवार, ११ मार्च २०१०
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