Tuesday, March 9, 2010

132 मौन की अमृतमयी आभा


नियम सारे
शरीर को लेकर हैं
स्वस्थ हैं 
तो नियमों का पालन है

स्व में स्थित हुए बिना
गति नहीं
स्वस्थ होना, गंतव्य नहीं
प्रारंभिक चरण मात्र है


कविता ने 
उस दिन
नदी, पेड़, हवा और पर्वत को साथ लेकर
'भाषण' के विरुद्ध 
किया था प्रदर्शन,
संवेदनात्मक अभिव्यक्ति में
नहीं प्रवेश कर सकता भाषण


भाषण, में 'द्वैतपना' है
एक सही 
दूजा गलत
कविता में
'एकात्मकता का आलिंगन' है

कविता सबको एक सूत्र में पिरोने
की सहज भावना का
उतरना है
या शायद
सबके बीच 'एक सूत्र' को देखने
की सर्वकालिक दृष्टि है

कविता जीवन के
विविध रूपों को
देखती, अपनाती, दुलराती
धीरे धीरे
आलोक के सुन्दर पदचिन्हों तक
मन को ले जाती

उस क्षण तक
जहाँ 
मौन की अमृतमयी आभा में
घुल कर
हम उज्जीवित होते

अपनी क्षुद्रता को खोते

चेतना के उन्नत स्तर पर
सौंप कर अपना आप

बन जाते हैं
विराट का चिन्मय आलाप


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
मंगलवार, मार्च ८, २०१०
सुबह ७ बज कर ४८ मिनट

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