१
हाथ हिला कर
एकाकी टापू से
गुहार रक्षा की
इस ओर से गुजरते जहाज से
जारी रहती है
कई बार हो चुकी
नाकाम कोशिशों के बावजूद
२
वह जो लक्ष्य है
मिले ना मिले
छोड़ तो नहीं सकते कोशिशें
पर कोशिश अपने आप में
पर्याप्त नहीं
कुछ है
जो किसी एक क्षण
मिल जाता है
कोशिशों से जब
पूरा होता है
एक आकार
३
पूर्णता का एक हिस्सा
हमारे भीतर है
या
सम्पूर्णता निहित है हममें?
४
सजग रह कर
जब जब
पुकारा है
समग्रता के बोध को
अक्सर लगा है
वह जो
बाहर से आकर बचाता लगता है
शायद
वह भी
छुपा हुआ तो था भीतर ही हमारे
५
हम स्वयं ही
एकाकी टापू बनाते हैं
पुकार लगाते हैं
और
स्वयं ही
खुद को बचा कर
एकाकीपन से पार लगाते हैं
६
हम इतने सारे खेल रचाते हैं
और
इस तरह
संसार रचते जाते हैं
रोते तब हैं
जब अपनी रचना में
स्वयं को कहीं खो आते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
८ मार्च २०१०, सोमवार, सुबह ८ बज कर ३० मिनट
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