Monday, February 8, 2010

१०२ वीं कविता, जिंदा होने का अर्थ


                                          (photo by - Shruti vyas)

कभी कभी यूँ होता है
हम अपने हिस्से की ज़मीन छोड़ देते हैं
शायद इसलिए की हममें
उतना विश्वास नहीं होता
कि हम
धरती को पैदावार के लिए
राजी करने जितना पसीना
कुशलता से बहा पायेंगे




कभी कभी
हम अपने अधिकार इसलिए छोड़ देते हैं
क्योंकि संकोच होता है
दावा करने में

हम नहीं कर पाते फर्क
अच्छा दिखने
और अच्छा होने में



कभी कभी
अपना पक्ष प्रस्तुत करने से पहले ही
हमें लगता है
फैसला होने ही वाला है
हमारे खिलाफ

और
हम ये बताने में भी
संकोच कर जाते हैं
कि लड़ाई में
हमारा अंदरुनी समर्थन
किस ओर था



इस तरह
कभी कभी
हम अपने संकोच
और अपने अविश्वास में
खुद को ये बताना भी
भूल जाते हैं
कि हम जिन्दा हैं

क्योंकी हम जान कर भी
नहीं मानते ये बात कि
जिंदा होने का अर्थ
सिर्फ सांस लेना नहीं है


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर १४ मिनट
८ फरवरी २०१०

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