तो क्या बात है
जो बहस के बीच
खींच देती है
एक ऐसी रेखा
कि आप या तो इस तरफ हो
या उस तरफ
२
रेखा के खिंच जाने के बाद
जब हमारे अन्दर
रेखा के निर्धारित स्थल को लेकर
होता है प्रश्न
जो हमें
किसी भी पक्ष को
पूरी तरह से स्वीकारने से रोकता है
तब हम ना इधर के होते हैं
ना उधर के
३
हम हर बार
रेखाओं के खिंच जाने के बाद ही
क्यों जागते हैं?
और जब संसार कथित रूप से
बंट गया होता है
दो हिस्सों में
हम ना इधर के
ना उधर के
सब जगह होते हुए भी
कहीं के नहीं रह जाते
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
फरवरी १३ १०
९ बज कर ४३ मिनट
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