Friday, February 12, 2010

105 veen kavita- अपना सम्पूर्ण वैभव

और कई बातें
चली आती हैं
खींचती हैं ध्यान
बंटवारा अपना हर दिन करते हैं हम
खंड खंड दिन में
बने रहते हैं अखंड
पर
कभी कभी
खिंचाव के क्षणों में
जब तिरोहित हो जाती
अपनी सम्पूर्ण पहचान

कातर होकर
पुकारते हैं
उसे
जिससे मिली है पहचान 
और जिसकी दृष्टी से 
फिर उजागर हो जाता 
अपना सम्पूर्ण वैभव 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
सुबह ७ बज कर ५८ मिनट पर

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