तलाश तो चलती ही रहेगी
उम्र भर
यात्रा के बीच
ठहर कर कहीं सुस्ताना
और गंतव्य तक पहुँच कर विश्राम करना
एक सा होने लगा है अब
क्यूँकी ठहरना तो कहीं भी नहीं है
जहाँ जहाँ पहुंचे
वहां वहां से लौटना है
शिखर पर झंडा लगा कर भी
लौटने वाला
कहलाता है विजेता
पहुँचने को ही जीतना कहते हैं हम
इसीलिए
जो अपने आप तक पहुंचा
हम कहते हैं
उसने अपने आप को जीत लिया
पर अपने आप तक पहुँच कर
जब लौट आते हैं हम
तो कहाँ आ जाते हैं
खुद को छोड़ कर
क्या खुद कभी होते ही नहीं साथ
साथ जो होता है
उसे हम पहचान कहते हैं
तो खेल सारा उस पहचान को पा लेने का है
जिसको पाने से
मिल जाता है सब कुछ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जनवरी २६, २०१०
सुबह ८ बज कर १२ मिनट
उम्र भर
यात्रा के बीच
ठहर कर कहीं सुस्ताना
और गंतव्य तक पहुँच कर विश्राम करना
एक सा होने लगा है अब
क्यूँकी ठहरना तो कहीं भी नहीं है
जहाँ जहाँ पहुंचे
वहां वहां से लौटना है
शिखर पर झंडा लगा कर भी
लौटने वाला
कहलाता है विजेता
पहुँचने को ही जीतना कहते हैं हम
इसीलिए
जो अपने आप तक पहुंचा
हम कहते हैं
उसने अपने आप को जीत लिया
पर अपने आप तक पहुँच कर
जब लौट आते हैं हम
तो कहाँ आ जाते हैं
खुद को छोड़ कर
क्या खुद कभी होते ही नहीं साथ
साथ जो होता है
उसे हम पहचान कहते हैं
तो खेल सारा उस पहचान को पा लेने का है
जिसको पाने से
मिल जाता है सब कुछ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जनवरी २६, २०१०
सुबह ८ बज कर १२ मिनट
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