सुबह सुबह कोई झकझोर कर उठाता नहीं है
पर कमरे कि चुप्पी में
महसूस करता हूँ
किसी का करुणामय बोध
स्वस्थ संभावनाओं में तैरते हुए
भर लेता हूँ
स्वयं को एकत्व के अनुनाद से
प्रार्थना करता हूँ
स्वयं से
उठो
करो सत्कार
पूर्ण मनोयोग से
एक नए दिन का,
सोम्पने अपना सुन्दरतम,
हो जाओ तैयार
मन, कर्म, वचन से,
धीरे धीरे
उत्साह की आरती में जाग्रत
फिर एक बार
जब बहने लगता है
निः स्वार्थ प्रेम मेरे रोम रोम से,
उंडेलने अपना 'आत्म वैभव',
मुस्कुरा कर करता हूँ
आलिंगन
एक नए दिन का
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर २७ मिनट
जन १८, 2010
पर कमरे कि चुप्पी में
महसूस करता हूँ
किसी का करुणामय बोध
स्वस्थ संभावनाओं में तैरते हुए
भर लेता हूँ
स्वयं को एकत्व के अनुनाद से
प्रार्थना करता हूँ
स्वयं से
उठो
करो सत्कार
पूर्ण मनोयोग से
एक नए दिन का,
सोम्पने अपना सुन्दरतम,
हो जाओ तैयार
मन, कर्म, वचन से,
धीरे धीरे
उत्साह की आरती में जाग्रत
फिर एक बार
जब बहने लगता है
निः स्वार्थ प्रेम मेरे रोम रोम से,
उंडेलने अपना 'आत्म वैभव',
मुस्कुरा कर करता हूँ
आलिंगन
एक नए दिन का
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
सुबह ८ बज कर २७ मिनट
जन १८, 2010
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