Friday, January 15, 2010

जीवित रहने का अभ्यास

दिन नया आ जाता है
बिना कुछ किये
या करता कोई और है
हम सिर्फ देखते हैं
पर क्या हम देखते भी हैं ?



नयापन देखने के लिए
नित्य जीवित रहने का अभ्यास करना होता है
सांस लेना मात्र जीना नहीं

जीना जाग्रत होना है
संवेदनशील सजगता
अपने प्रति और अपने आस पास के वातावरण के प्रति
जीवित रखती है हमें



अक्सर हम अपनी सजगता
कुछ जरूरतों
कुछ अपेक्षाओं
कुछ उपलाब्धियों तक
सीमित कर देते हैं
उन बातों के होने ना होने से परे
स्वीकार ही नहीं पाते अपना होना
जीवन होने का नाम है



होने के लिए हमें
कुछ भी ना करना पड़ता
अगर
हमने 'ना होने' के लिए
बहुत कुछ 'ना' किया होता
जाने- अनजाने में

अब जहाँ हैं
'ना होने' के लिए
बहुत अभ्यास कर चुके हैं

सजगता का घेरा बढ़ाने का प्रयास
कभी हमें अव्यावहारिक लगता है
कभी पलायन

किसी जिद्दी बच्चे की तरह
समग्रता से मिलने वाली शांति
हम सीमित दायरे में ढूंढते रहते हैं
बार बार



नाटकीय ढंग से
क्या आज ले लें एक शपथ
"मुझे होना है'
मुझे जीवित होना है
सूरज की किरणों में
सीमित सोच से उपजता
सारा मैल धोना है'

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जनवरी १५, २०१०
सुबह ६ बज कर १५ मिनट

No comments:

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...