लिख कर डिलीट करने के बाद
स्क्रीन ऐसा दिखाती है
जैसे जानते ही ना हो
कुछ शब्द आये थे
एक भाव, एक विचार उतरा था
नयेपन की तलाश में
नाकाम होकर मिट गया
२
नयापन कभी कभी
ढलान पर अपने आप दौड़ लगाने में भी
मिल जाता है
अनायास
पर उसे देखने और महसूसने के लिए
रुकना होता है
ढलान पर बेतहाशा भागते हुए
ठहरने में जोर पड़ता है
संतुलन तक आते आते अंदेशा रहता है
कहीं गिर ना जाएँ
३
नयापन ढूँढने
कभी कभी हम ऊपर की ओर चढ़ते हैं
हाँफते हाँफते
साँसों को सहेजने के अलावा
और किसी अनुभूति को देखने की क्षमता भी नहीं होती
तब भी ठहर कर
साँसों के संतुलन तक
पहुंचे बिना
नहीं कर पाते
नयेपन का स्पर्श
४
नयापन
ना ढलान पर है
ना चढ़ाई पर है
ना गति में है
ना ठहराव में
नयापन
होता है
कहीं मध्य बिंदु पर
जहा बोध
ना ढलान का होता है
ना उंचाई का
बोध होता है
एक सक्रिय, सजग संतुलन का
और इस सतुलन में
झर-झर आता है
बोध अपने होने का
५
नयापन
नए नए तरीके से
अपने आप तक पहुँचने से
खिलता है
लगे भले ही बाहर से आता
हर बार हमें अपने भीतर से ही
मिलता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ जनवरी १०, ७ बज कर १९ मिनट
सोमवार
स्क्रीन ऐसा दिखाती है
जैसे जानते ही ना हो
कुछ शब्द आये थे
एक भाव, एक विचार उतरा था
नयेपन की तलाश में
नाकाम होकर मिट गया
२
नयापन कभी कभी
ढलान पर अपने आप दौड़ लगाने में भी
मिल जाता है
अनायास
पर उसे देखने और महसूसने के लिए
रुकना होता है
ढलान पर बेतहाशा भागते हुए
ठहरने में जोर पड़ता है
संतुलन तक आते आते अंदेशा रहता है
कहीं गिर ना जाएँ
३
नयापन ढूँढने
कभी कभी हम ऊपर की ओर चढ़ते हैं
हाँफते हाँफते
साँसों को सहेजने के अलावा
और किसी अनुभूति को देखने की क्षमता भी नहीं होती
तब भी ठहर कर
साँसों के संतुलन तक
पहुंचे बिना
नहीं कर पाते
नयेपन का स्पर्श
४
नयापन
ना ढलान पर है
ना चढ़ाई पर है
ना गति में है
ना ठहराव में
नयापन
होता है
कहीं मध्य बिंदु पर
जहा बोध
ना ढलान का होता है
ना उंचाई का
बोध होता है
एक सक्रिय, सजग संतुलन का
और इस सतुलन में
झर-झर आता है
बोध अपने होने का
५
नयापन
नए नए तरीके से
अपने आप तक पहुँचने से
खिलता है
लगे भले ही बाहर से आता
हर बार हमें अपने भीतर से ही
मिलता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ जनवरी १०, ७ बज कर १९ मिनट
सोमवार
No comments:
Post a Comment