दूर तक देख कर भी
लौटना तो होता है
अपनी देहरी में
देखना पहुंचना नहीं होता है
पहुँचने के बाद
होता नहीं लौटना
२
अमृत घट खाली देख कर
उसे पुकारा
तो सन्देश मिला
'जितना तुम पी चुके हो
वो भी काफी है
मृत्यु के पार जाने के लिए
पिए हुए अमृत को
पचाने का अभ्यास तो करो'
३
अमृत पचाने के लिए
वितरित करना होता है
आनंद
शाश्वत श्रद्दा लेकर
घूमना होता है गली गली
कह कर मुस्कुराया वह
'हर दिन कविता ही नहीं
उन्डेलो उसमें
अपना आत्म सौंदर्य
अपनी तृप्ति का वैभव
अपनी शाश्वत रसमयता से
पोषित कर अपनी चिंतन धारा
बहो अभिव्यक्ति के शिखर से
पूर्ण निश्चिन्त
समर्पित हो
अनंत को
कण कण
दिशा
गति
और प्रवाह का प्रेरक वेग
४
मुक्ति मांगने से नहीं
अपने को जानने से मिलती है
जान लेना ही मुक्ति है
जानने के लिए
मुक्त करो अपने आप को
सीमा नहीं
कामना नहीं
आनंद, प्रेम और कृतज्ञता
जो हो
जैसे हो
जहाँ हो
हर अनुभूति
हर अनुभव के लिए
हर सांस के लिए
कृतज्ञता
कोई खिचाव नहीं
सत्य की निश्छल धारा में
करो स्नान
०००००००००
१
कई बार बात वो नहीं होती
जो दिखती है
बात ऊपर तक आकर टकराती है जब
अलग अलग रंगों के मेल जोल में
दिखाई पड़ता है
हम भीतर से कितने अलग अलग हैं
अपने अलग होने का अर्थ अलगाव नहीं है
यह तो रचनात्मकता है
सृष्टा की
कृपा के आलोक में
हम इस अनेकता का
उत्सव मनाते हैं
जीवन को नित्य रसमय पाते हैं
अपने आप में स्थित रह कर
साथ साथ बढ़ते जाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जनवरी ११, १०, रविवार
सुबह ६ बज कर ४५ मिनट
लौटना तो होता है
अपनी देहरी में
देखना पहुंचना नहीं होता है
पहुँचने के बाद
होता नहीं लौटना
२
अमृत घट खाली देख कर
उसे पुकारा
तो सन्देश मिला
'जितना तुम पी चुके हो
वो भी काफी है
मृत्यु के पार जाने के लिए
पिए हुए अमृत को
पचाने का अभ्यास तो करो'
३
अमृत पचाने के लिए
वितरित करना होता है
आनंद
शाश्वत श्रद्दा लेकर
घूमना होता है गली गली
कह कर मुस्कुराया वह
'हर दिन कविता ही नहीं
उन्डेलो उसमें
अपना आत्म सौंदर्य
अपनी तृप्ति का वैभव
अपनी शाश्वत रसमयता से
पोषित कर अपनी चिंतन धारा
बहो अभिव्यक्ति के शिखर से
पूर्ण निश्चिन्त
समर्पित हो
अनंत को
कण कण
दिशा
गति
और प्रवाह का प्रेरक वेग
४
मुक्ति मांगने से नहीं
अपने को जानने से मिलती है
जान लेना ही मुक्ति है
जानने के लिए
मुक्त करो अपने आप को
सीमा नहीं
कामना नहीं
आनंद, प्रेम और कृतज्ञता
जो हो
जैसे हो
जहाँ हो
हर अनुभूति
हर अनुभव के लिए
हर सांस के लिए
कृतज्ञता
कोई खिचाव नहीं
सत्य की निश्छल धारा में
करो स्नान
०००००००००
१
कई बार बात वो नहीं होती
जो दिखती है
बात ऊपर तक आकर टकराती है जब
अलग अलग रंगों के मेल जोल में
दिखाई पड़ता है
हम भीतर से कितने अलग अलग हैं
अपने अलग होने का अर्थ अलगाव नहीं है
यह तो रचनात्मकता है
सृष्टा की
कृपा के आलोक में
हम इस अनेकता का
उत्सव मनाते हैं
जीवन को नित्य रसमय पाते हैं
अपने आप में स्थित रह कर
साथ साथ बढ़ते जाते हैं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
जनवरी ११, १०, रविवार
सुबह ६ बज कर ४५ मिनट
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