Thursday, January 7, 2010

नए सूरज का उजाला


कभी कभी
यूँ होता है
की दिख रहा होता है
नए सूरज का उजाला
शब्दों से छन छन कर
आने लगता है
कोई रूप मतवाला

संगीत सा बजता है
सांसों में
उभरता है गीत
खुशियों वाला

आशाओं की किरणों
से सजा दिखता है
हर क्षण
जो है आने वाला



कभी कभी
यूँ भी होता है
खिलते खिलते
रुक सा जाता है
फूल का खिलना

छटपटाता है मन
जाने कब होगा
फिर अपनी ही
लय से मिलना

एक गुमसुम सा पंछी
बैठ कर कंधे पर
जगा देता है
जड़ता का बंधन

फूटती है रुलाई
छूटने लगता है
अपने आप से
किया हुआ वचन


दूसरी कविता
प्रार्थना
आज से नया हो
आत्म दर्शन
आज फिर सार्थक हो
सम्भावना का आलिंगन
आज अनुभव नदिया पा जाये
सागर का ख़त
आज अनुभूति में सुन जाए
सच की दस्तक

आज आगे बढ़ने की अकुलाहट
पा जाये दिशा, गति और संबल

आज जाग्रत हो ऐसी आश्वस्ति
जो सार्थक, सुन्दर करे हर पल

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
गुरुवार
जन ७ १०
सुबह ७ बज कर १० मिनट

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