शरीर का अर्थ ही चंचलता है
शरारत शरीर की संचालित है मन से
मन सेतु है
इन्द्रियों और इन्द्रियातीत के बीच
मन बावरा नहीं रहता जब
हर क्षण दिखाता है
कालातीत का साहचर्य
हर क्षण की पकड़ से छूटने का
अभ्यास जब दृढ हो जाता है
धीरे धीरे
निरंतर मुक्ति का स्वाद
सहज सा हो जाता है
हर क्षण में एक फंदा है
जो पैनी दृष्टि
काट देती है
सरलता से
दृष्टि का ये पैनापन
वहाँ से आता है
जहाँ हर मनुष्य आता है
और फिर एक दिन
देह छोड़ कर लौट जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ जनवरी १०, रविवार
सुबह, ६ बज कर ३६ मिनट
शरारत शरीर की संचालित है मन से
मन सेतु है
इन्द्रियों और इन्द्रियातीत के बीच
मन बावरा नहीं रहता जब
हर क्षण दिखाता है
कालातीत का साहचर्य
हर क्षण की पकड़ से छूटने का
अभ्यास जब दृढ हो जाता है
धीरे धीरे
निरंतर मुक्ति का स्वाद
सहज सा हो जाता है
हर क्षण में एक फंदा है
जो पैनी दृष्टि
काट देती है
सरलता से
दृष्टि का ये पैनापन
वहाँ से आता है
जहाँ हर मनुष्य आता है
और फिर एक दिन
देह छोड़ कर लौट जाता है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
३ जनवरी १०, रविवार
सुबह, ६ बज कर ३६ मिनट
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