कभी कभी यूँ लगता है
बर्फ की पतली चादर पर चल रहा हूँ
फिर भी आश्वस्ति है आगे बढ़ने की
विश्वास की जैसे नहीं होगी बाधा कोई गति में मेरी
जीवन अब तक
लगता है एक सपने सा
सम्बन्ध मनुष्यों से और कार्य से
बनता है जो
आनंददायी
उसमें मेरी समझ से ज्यादा असर करती है
कृपा उसकी
उसको देखते देखते
चलते चलते
कभी लग जाए ठोकर तो भी
होती है आशीष सी
मैं अपने आप को छोड़ कर चलते चलते
अपने तक पहुँचने के प्रार्थना मय प्रयास में
अक्सर देखता हूँ
एक आलोक का घेरा
मेरे आस पास,
इसे फैला कर
आलिंगन बद्ध करने
सारे संसार को
हर सुबह
लेता हूँ मदद
कविता की
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
दिसंबर २९ ०९, मंगलवार
सुबह ६ बज कर ४ मिनट
बर्फ की पतली चादर पर चल रहा हूँ
फिर भी आश्वस्ति है आगे बढ़ने की
विश्वास की जैसे नहीं होगी बाधा कोई गति में मेरी
जीवन अब तक
लगता है एक सपने सा
सम्बन्ध मनुष्यों से और कार्य से
बनता है जो
आनंददायी
उसमें मेरी समझ से ज्यादा असर करती है
कृपा उसकी
उसको देखते देखते
चलते चलते
कभी लग जाए ठोकर तो भी
होती है आशीष सी
मैं अपने आप को छोड़ कर चलते चलते
अपने तक पहुँचने के प्रार्थना मय प्रयास में
अक्सर देखता हूँ
एक आलोक का घेरा
मेरे आस पास,
इसे फैला कर
आलिंगन बद्ध करने
सारे संसार को
हर सुबह
लेता हूँ मदद
कविता की
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
दिसंबर २९ ०९, मंगलवार
सुबह ६ बज कर ४ मिनट
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