Tuesday, December 22, 2009

मुक्त अपने आप से हो



अकेलापन
जो है
सम्बंधित है
किसी से ना जुड़ पाने की स्थिति से

ना जुड़ पाना जो है
सम्बंधित है
अपने ही किसी हिस्से से बंध जाने से

बंध जाने की जो कसक है
उसमें अच्छी बात ये है की
हम मुक्त होने के लिए
जोर लगाते हैं

जोर लगाते लगाते
किसी क्षण जब यह समझ पाते हैं

की बंधन को मजबूत हम खुद ही बनाते हैं

अपने को मुक्ति के समीप पाते हैं

बंधन चाहे खुद से हो
या किसी और से

बंधन बंधन ही होता है
बंधन मुक्ति नहीं होता

मुक्ति के लिए
अक्सर हम ओरों को छोड़ना तो सीख पाते हैं
पर
सही आनंद तब मिलता है
जब
ओरों के साथ साथ स्वयं को भी छोड़ पाते हैं


मुक्त अपने आप से हो
आग्रहों के श्राप से हो
आस के संगीत के संग
उठ रहे आलाप से हो



चल निकल झरने सा बन कर
बह मचल पर्वत से छन कर
सारा जग घर सा लगे
घर से निकल, तू ऐसा बन कर


अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
दिसंबर २२, ०९
सुबह ६ बज कर २५ मिनट

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