Friday, December 18, 2009

विराट की आरती



ना लय का, ना सुर ताल का
बंधन सच्चा नन्दलाल का
वो ही साथी एक नित्य है
जो रचाए है खेल काल का

भंवरा फूल, रसिक उन्नत पथ
पग पग पर अच्युत का स्वागत
चिन्मय, रसमय, सखा हमारा
मधुमय मंगल मोहिनी मूरत

सुबह सुबह
सहसा
संस्कारों के उन्नत स्पर्श से
जाग उठती कालातीत की स्मृतियाँ
बैठ शब्द गंगा किनारे
रूपांतरित करता अपनी काया
दिख पड़ती मन में
विस्तार कि अमिट छाप

इस क्षण जैसे
अमृत का बुलावा
इस क्षण जैसे
तत्पर हूँ
सौंपने अपना सर्वस्व
सार सुधा को
शाश्वत के निमंत्रण पर
अब चलने को हूँ
उस पथ
जिस पर प्रेम, सेवा,
समन्वय और आस्था
करते हैं
आरती जीवन की

मुझे मिला है अनुबंध
अपने जीवन से
करूँ गुणगान उसका
जिससे श्रद्धा नित्य हरी भरी

जो क्रियाशील होकर भी
निश्चल और शांत है निरंतर

जो अपार वैभवशाली होकर भी
अनासक्त

जिसके साथ खेल कर
मन में खुल जाती है
अनंत आनद की दुर्लभ अनुभूति

संकेत ऐसे हैं की
ये निमंत्रण
भेजा गया है
हर मनुज को

कोई कोई देख पाएंगे
कोई कोई पहचान पाएंगे
और गुरु कृपा से
कोई कोई
जीवन को लेकर
विराट की आरती करने
अपने क्षुद्र घेरे से
बाहर निकल पाएंगे

जय हो

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
दिसंबर १८, ०९
शुक्रवार, सुबह ५ बज कर १० मिनट

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