Thursday, December 17, 2009

जो रहता है हमेशा


क्या ये नहीं हो सकता
की खुला रहे
ताजगी का वैभव
नूतन आलोक में भीगा मन
सुने पवन में
सांवरे की बंशी

क्या ये नहीं हो सकता
की अशुद्ध करते, कुंठा और क्षोभ बढ़ाते भाव
तत्क्षण
मिटा दे
किसी का स्पर्श

हर दिन कविता की गोद में
जगा कर शाश्वत कोमलता
महसूस करता
आवरण मधुर मौन का
घेर कर मुझे

Align Centerपोषित करता है
कालातीत के चिर स्वच्छ स्पंदनों से

इस तरह
ज्योतिर्मय अनुबंध का स्मरण
उज्जीवित कर
धर देता साँसों में प्रसाद
एक उसका
जो है
जो था
जो रहता है हमेशा

अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
दिसंबर १७, गुरुवार
सुबह ८ बज कर ४४ मिनट पर

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