चाहिए जब, जहाँ जैसा रास्ता
देखो आंख मूँद कर
अपने भीतर
देख कर रचो
अन्य रास्तों से बचो
एकटक उधर देखो
जिस तरफ़ बढ़ना है
मत भूलो
जीवन कुछ ऐसा है
बाहर जो दिखता है
भीतर से गढ़ना है
एक शिल्पी
आढ़ी-टेढ़ी चोट लगा पत्थर पर
उकेर सकता है
कोई भी आकार,
पर प्रकट करने
कोई विशेष प्रतिमा
हर चोट के साथ
चाहिए विचार,
विचार करना भी एक कला है
वो हारा, जो इससे टला है
वो हारा, जो लड़खड़ा कर
फिर नहीं संभला है
हर चुनौती में अमृतमय आव्हान है
उसे प्रकट करो, जो तुम्हारी शान है
पुकारोगे तो आएगा अवश्य
यदि पुकार में सत्य विद्यमान है
अशोक व्यास
न्युयोर्क, अमेरिका
दिसम्बर ११, ०९ सुबह ७ बज कर १४ मिनट पर
देखो आंख मूँद कर
अपने भीतर
देख कर रचो
अन्य रास्तों से बचो
एकटक उधर देखो
जिस तरफ़ बढ़ना है
मत भूलो
जीवन कुछ ऐसा है
बाहर जो दिखता है
भीतर से गढ़ना है
एक शिल्पी
आढ़ी-टेढ़ी चोट लगा पत्थर पर
उकेर सकता है
कोई भी आकार,
पर प्रकट करने
कोई विशेष प्रतिमा
हर चोट के साथ
चाहिए विचार,
विचार करना भी एक कला है
वो हारा, जो इससे टला है
वो हारा, जो लड़खड़ा कर
फिर नहीं संभला है
हर चुनौती में अमृतमय आव्हान है
उसे प्रकट करो, जो तुम्हारी शान है
पुकारोगे तो आएगा अवश्य
यदि पुकार में सत्य विद्यमान है
अशोक व्यास
न्युयोर्क, अमेरिका
दिसम्बर ११, ०९ सुबह ७ बज कर १४ मिनट पर
1 comment:
बहुत सुन्दर और गहरी आध्यात्मिक रचना है। बहुत बढिया लिखा है।आभार।
Post a Comment