कविता इस क्षण के साथ मेरे सम्बन्ध का पुल है
यह क्षण जो मैं हूँ
और यदि यह क्षण मैं हूँ
इससे पहले वाला क्षण भी मैं था
आने वाला क्षण भी मैं ही होने वाला हूँ
तो
क्या मैं ही समय हूँ
और यदि मैं समय होकर भी समय से परे की चेतना के साथ जुड़ सकता हूँ
तो मैं सिर्फ़ समय ही तो नहीं
कुछ और भी हूँ
क्या हूँ मैं?
सुबह सुबह
बैठ कर कविता की गोद में
जिद करता हूँ
दिखलाओ मेरा चेहरा
कविता अनिश्चय को बचाए रखते हुए
निश्चित करती है
मेरे लिए
एक भाव रूपी आकार
नए सिरे से दिखला देती है
एक नदी, एक सागर, एक लहर
जिसका मर्म है प्यार
तो क्या
मैं और कुछ नहीं प्यार के सिवा
तो क्या मैं और कुछ नहीं शान्ति के सिवा
कविता मुस्कुराती है
चुपचाप ये जताती है
की मैं
अपने आप को हर क्षण जन्म देता हूँ
और हर क्षण अपना संहार भी करता हूँ
इस तरह मैं वो हूँ जो जन्म मरण से परे है
कविता मुझमें विद्यमान
असीम की झलक दिखाती है
और फिर मुझे योग निद्रा में सुलाती है
सबसे एक करवाती है
क्या है जगत
यदि कविता ही मेरी सच्ची साथी है?
२
सहसा कोंधता है ये ख्याल
क्या सारा जगत भी एक कविता है
यदि हाँ
तो किसकी लिखी है ये कविता
और
क्यों अनंत रूपों मैं नित्य नयी हो रही है ये
क्या कोई पढ़ भी सकता है इसे
क्या लिखने वाले ने कभी न चाहा होगा
की कोई इसे पढ़े, इसे समझे
या वो स्वयं ही है लिखने वाला
और स्वयं ही है पढने वाला
ये कविता वो ही पढ़-समझ पाये
जो लिखने वाले के साथ
एक मेक हो जाए
अशोक व्यास
न्युयोर्क, अमेरिका
सुबह ५ बज कर ४० मिनट
शनिवार, दिसम्बर १२, ०९
यह क्षण जो मैं हूँ
और यदि यह क्षण मैं हूँ
इससे पहले वाला क्षण भी मैं था
आने वाला क्षण भी मैं ही होने वाला हूँ
तो
क्या मैं ही समय हूँ
और यदि मैं समय होकर भी समय से परे की चेतना के साथ जुड़ सकता हूँ
तो मैं सिर्फ़ समय ही तो नहीं
कुछ और भी हूँ
क्या हूँ मैं?
सुबह सुबह
बैठ कर कविता की गोद में
जिद करता हूँ
दिखलाओ मेरा चेहरा
कविता अनिश्चय को बचाए रखते हुए
निश्चित करती है
मेरे लिए
एक भाव रूपी आकार
नए सिरे से दिखला देती है
एक नदी, एक सागर, एक लहर
जिसका मर्म है प्यार
तो क्या
मैं और कुछ नहीं प्यार के सिवा
तो क्या मैं और कुछ नहीं शान्ति के सिवा
कविता मुस्कुराती है
चुपचाप ये जताती है
की मैं
अपने आप को हर क्षण जन्म देता हूँ
और हर क्षण अपना संहार भी करता हूँ
इस तरह मैं वो हूँ जो जन्म मरण से परे है
कविता मुझमें विद्यमान
असीम की झलक दिखाती है
और फिर मुझे योग निद्रा में सुलाती है
सबसे एक करवाती है
क्या है जगत
यदि कविता ही मेरी सच्ची साथी है?
२
सहसा कोंधता है ये ख्याल
क्या सारा जगत भी एक कविता है
यदि हाँ
तो किसकी लिखी है ये कविता
और
क्यों अनंत रूपों मैं नित्य नयी हो रही है ये
क्या कोई पढ़ भी सकता है इसे
क्या लिखने वाले ने कभी न चाहा होगा
की कोई इसे पढ़े, इसे समझे
या वो स्वयं ही है लिखने वाला
और स्वयं ही है पढने वाला
ये कविता वो ही पढ़-समझ पाये
जो लिखने वाले के साथ
एक मेक हो जाए
अशोक व्यास
न्युयोर्क, अमेरिका
सुबह ५ बज कर ४० मिनट
शनिवार, दिसम्बर १२, ०९
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