हर सुबह
जब धरती का स्पर्श कर
मांगता हूँ क्षमा
अपने चरणों से माँ का स्पर्श करने के लिए
मुझे देख रहे होते हैं
ऋषि मुनि
उन्ही को साथ लिए
बढाता हूँ कदम
दिन की पगडण्डी पर
अपने हाथ फैला कर
विनयशीलता से
ग्रहण करता हूँ
प्रसाद अनुभवों के
धमक घटनाओं की
लीलने को होती है
मेरा मौन
कई सीढ़ियों पर जब
उतर कर अपने भीतर
देखता हूँ
साँसों में
उस सुनहरे आलोक को
जिसमें दिखाई देता रहा
नंदलाल
कभी घुटनों के बल
कभी बंशी लिए
अब ना जाने कैसे
मैं जान गया हूँ
मुझे जीवित रखने का जिम्मा
कहीं ना कहीं
मेरी सजगता का भी है
सजग हुए बिना
नहीं रहता जाग्रत परिचय अच्युत का
और जब जब स्वयं से संपर्क खो जाता है
जीना मरने के जैसा ही हो जाता है
अशोक व्यास
रविवार, ७ बज कर ४२ मिनट
न्यू योर्क, अमेरिका
जब धरती का स्पर्श कर
मांगता हूँ क्षमा
अपने चरणों से माँ का स्पर्श करने के लिए
मुझे देख रहे होते हैं
ऋषि मुनि
उन्ही को साथ लिए
बढाता हूँ कदम
दिन की पगडण्डी पर
अपने हाथ फैला कर
विनयशीलता से
ग्रहण करता हूँ
प्रसाद अनुभवों के
धमक घटनाओं की
लीलने को होती है
मेरा मौन
कई सीढ़ियों पर जब
उतर कर अपने भीतर
देखता हूँ
साँसों में
उस सुनहरे आलोक को
जिसमें दिखाई देता रहा
नंदलाल
कभी घुटनों के बल
कभी बंशी लिए
अब ना जाने कैसे
मैं जान गया हूँ
मुझे जीवित रखने का जिम्मा
कहीं ना कहीं
मेरी सजगता का भी है
सजग हुए बिना
नहीं रहता जाग्रत परिचय अच्युत का
और जब जब स्वयं से संपर्क खो जाता है
जीना मरने के जैसा ही हो जाता है
अशोक व्यास
रविवार, ७ बज कर ४२ मिनट
न्यू योर्क, अमेरिका
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