विराट के सम्मुख धर कर मानस
करता हूँ निवेदन
दो मुझे
कोई नया चिन्ह अपना
उतरो रिम-झिम धार बन कर
उकेर दो मेरी उपस्थिति पर
अपने पूर्ण वैभव का
कोई नया प्रमाण
पर्वत का मौन
या पवन का संगीत
पत्ती-पत्ती में घुला
सृजन का गीत
निश्छल, निष्कलंक
अद्वितीय प्रेम की तन्मयता
जब छा कर मेरे रोम रोम पर
मेरी हर साँस से
गाने लगे तुम्हारी महिमा
उस क्षण के लिए
क्या मुझे करनी होगी और प्रतीक्षा
या
अब अपनी करूणावश
अपना सतत जाग्रत चिन्ह धर
मुझ पर
अपनापन लिखने को
हो गए हो तत्पर
और
तुम्हारा हो जाने का चरम
झांक रहा है
अब इसी क्षण के झरोखे से
अहा!
अशोक व्यास
न्युयोर्क
सुबह ८ बज कर २३ मिनट
शनिवार, दिसम्बर ५, 09
करता हूँ निवेदन
दो मुझे
कोई नया चिन्ह अपना
उतरो रिम-झिम धार बन कर
उकेर दो मेरी उपस्थिति पर
अपने पूर्ण वैभव का
कोई नया प्रमाण
पर्वत का मौन
या पवन का संगीत
पत्ती-पत्ती में घुला
सृजन का गीत
निश्छल, निष्कलंक
अद्वितीय प्रेम की तन्मयता
जब छा कर मेरे रोम रोम पर
मेरी हर साँस से
गाने लगे तुम्हारी महिमा
उस क्षण के लिए
क्या मुझे करनी होगी और प्रतीक्षा
या
अब अपनी करूणावश
अपना सतत जाग्रत चिन्ह धर
मुझ पर
अपनापन लिखने को
हो गए हो तत्पर
और
तुम्हारा हो जाने का चरम
झांक रहा है
अब इसी क्षण के झरोखे से
अहा!
अशोक व्यास
न्युयोर्क
सुबह ८ बज कर २३ मिनट
शनिवार, दिसम्बर ५, 09
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