Friday, December 4, 2009

शब्दों की परिधि


चुनौती यह नहीं
की कैसे आए नयापन
चुनौती यह की
कैसे करूँ स्वीकार
यह नित नित उमड़ता नयापन

देख लेने
इस नित्य नूतन को
मांग लेता दृष्टि इसी से

और फिर
सहेजने इस दृष्टि की स्मृति
बैठ कर कविता की गोद में
सौंप देता यह दुर्लभ उपहार अच्युत का

शब्द मातृरूप में
सुरक्षित रखते हैं
सर्वोत्तम

बोध दुर्ग में
सत्य की अनुभूति ने
किस तरह फैलाई थी
अपनी शोभा की किरणें

याद दिलाते हैं शब्द
उस समय फिर से
जब सत्य का परिचय धुंधलाने लगता है मेरे लिए

करुणामय सत्य
शब्दों की परिधि को
व्यापक कर
मेरे लिए सुलभ करवाता है विस्तार


अशोक व्यास
न्यू योर्क
सुबह ५ बज कर ९ मिनट
शुक्रवार, दिसम्बर ४, ०९

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