लो देख लो
सारी धरती
सारा आसमान
और ये सब
नदी, पर्वत, पेड़, मैदान
देख रहे हो
हम वहां हैं
जहाँ से सब कुछ बदल सकते हैं
फिर से व्यवस्थित कर सकते हैं
सब कुछ
विश्वास नहीं होता ना
होने लगेगा
जब व्यवस्था उमडेगी
भीतर से तुम्हारे
जब मूँद कर आंखें
देख पाओगे तुम
ज्यों ज्यों आतंरिक व्यवस्था बदलेगी
दुनिया बाहर कि
बदलती जायेगी अपने आप
तो चलो
बाहर कुछ मत देखो थोडी देर
देखते रहो
भीतर का सागर
भीतर कि लहरें
भीतर कि उथल पुथल
भीतर के संशय
और
स्मृति उसकी
जिससे
सुंदर, आभा वाला
प्रखर सूर्य उदित होकर भीतर
फैला देता है
वह उजाला
जो पुनर्व्यवस्थित करता है
भीतर का संसार ऐसे
कि उजाला भीतर का
बाहर तक आता है
तुम्हारी आँखों, तुम्हारे शब्दों, तुम्हारी साँसों से
लो देख लो
सारी धरती
सारा आसमान
और ये सब
नदी, पर्वत, पेड़, मैदान
देख रहे हो
हम वहां हैं
जहाँ से सब कुछ बदल सकते हैं
अशोक व्यास
नवम्बर १, ०९, न्यू यार्क
सुबह ६:०० बजे
सारी धरती
सारा आसमान
और ये सब
नदी, पर्वत, पेड़, मैदान
देख रहे हो
हम वहां हैं
जहाँ से सब कुछ बदल सकते हैं
फिर से व्यवस्थित कर सकते हैं
सब कुछ
विश्वास नहीं होता ना
होने लगेगा
जब व्यवस्था उमडेगी
भीतर से तुम्हारे
जब मूँद कर आंखें
देख पाओगे तुम
ज्यों ज्यों आतंरिक व्यवस्था बदलेगी
दुनिया बाहर कि
बदलती जायेगी अपने आप
तो चलो
बाहर कुछ मत देखो थोडी देर
देखते रहो
भीतर का सागर
भीतर कि लहरें
भीतर कि उथल पुथल
भीतर के संशय
और
स्मृति उसकी
जिससे
सुंदर, आभा वाला
प्रखर सूर्य उदित होकर भीतर
फैला देता है
वह उजाला
जो पुनर्व्यवस्थित करता है
भीतर का संसार ऐसे
कि उजाला भीतर का
बाहर तक आता है
तुम्हारी आँखों, तुम्हारे शब्दों, तुम्हारी साँसों से
लो देख लो
सारी धरती
सारा आसमान
और ये सब
नदी, पर्वत, पेड़, मैदान
देख रहे हो
हम वहां हैं
जहाँ से सब कुछ बदल सकते हैं
अशोक व्यास
नवम्बर १, ०९, न्यू यार्क
सुबह ६:०० बजे
9 comments:
अशोक व्यास जी ,
बाहर को व्यवस्थित करने के लिए भीतर को टटोलना , संभालना पहली ज़रूरत है .बहुत सुंदर कविता . उतने ही समझदारी भरे भाव .अतुलनीए prakritik सौन्दर्य.यादें ना हों तो साहित्य ही ना हो , कुछ भी हो लेकिन इंसान इंसान ही ना हो .कोई अपने भीतर झाँके तो सही .
आप जाने पहचाने से क्यों लग रहे हैं ?
कविता अच्छी है, कहीं-कहीं थोड़ी खंडित सी लगती है, फिर भी अच्छा प्रयास है.
बहुत सुन्दर कविता है.
Aapka aagaman mubarak hai.
Devi Nangrani
ज्यों ज्यों आतंरिक व्यवस्था बदलेगी
दुनिया बाहर कि
बदलती जायेगी अपने आप
YE SAAR TATV HAI.. JEEVAN KI KAVITA BHI ITNI HI HAI
nice.narayan narayan
sundar rachna.
हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें तथा अपने सुन्दर
विचारों से उत्साहवर्धन करें
चिटठा जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
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