यहाँ तक पहुँच कर
जब जब मुड कर देखा है
सुंदर लगा है रास्ता
जैसे किसी ने अपनी गोद में उठा कर
करवा दी हों पार
सारी की सारी चढ़ाइयाँ
फिर हर कदम बनने लगता है प्रार्थना
हर साँस सुनाने लगती है
कृतज्ञता के गीत
तुम सर्वत्र हो अगर
सर्वकालिक हो अगर
सर्वशक्तिमान हो अगर
और मुझसे अटूट सम्बन्ध भी है तुम्हारा
तो फिर
कभी कभी ऐसा क्यों लगता है
कि हो गया हूँ मैं बेसहारा
किसी किसी क्षण एकाकी हो जाता इतना
कि उस क्षण छू नहीं पाती तुम्हारी अनुभूति की धारा
और इतना असहाय भी लगता है अपना आप
की बहुमूल्य जीवन लगने लगता जैसे कोई श्राप
कैसे सम्भव हो
तुम्हारा सतत जाग्रत साहचर्य
कैसे बने हर साँस
नित्य तुम्हारा गुणगान
कैसे दिखाई दे हर मानव मे
तुम्हारी छवि
कैसे हर घटना मे महसूस कर पाऊँ
कृपा तुम्हारी
एक बार यह बात बता देना
ओ गिरिधारी
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
नवम्बर २४, ०९
नुयोर्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर ११ मिनट
जब जब मुड कर देखा है
सुंदर लगा है रास्ता
जैसे किसी ने अपनी गोद में उठा कर
करवा दी हों पार
सारी की सारी चढ़ाइयाँ
फिर हर कदम बनने लगता है प्रार्थना
हर साँस सुनाने लगती है
कृतज्ञता के गीत
तुम सर्वत्र हो अगर
सर्वकालिक हो अगर
सर्वशक्तिमान हो अगर
और मुझसे अटूट सम्बन्ध भी है तुम्हारा
तो फिर
कभी कभी ऐसा क्यों लगता है
कि हो गया हूँ मैं बेसहारा
किसी किसी क्षण एकाकी हो जाता इतना
कि उस क्षण छू नहीं पाती तुम्हारी अनुभूति की धारा
और इतना असहाय भी लगता है अपना आप
की बहुमूल्य जीवन लगने लगता जैसे कोई श्राप
कैसे सम्भव हो
तुम्हारा सतत जाग्रत साहचर्य
कैसे बने हर साँस
नित्य तुम्हारा गुणगान
कैसे दिखाई दे हर मानव मे
तुम्हारी छवि
कैसे हर घटना मे महसूस कर पाऊँ
कृपा तुम्हारी
एक बार यह बात बता देना
ओ गिरिधारी
जय श्री कृष्ण
अशोक व्यास
नवम्बर २४, ०९
नुयोर्क, अमेरिका
सुबह ७ बज कर ११ मिनट
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