Monday, November 23, 2009

ना जाने क्यों


अनिश्चय के बीच
समय को आकार दे
स्पष्टता की सीढियां बनाने
अब तक
तुम्हारी ओर देखता हूँ

माँ जब जब
बच्चे को आसमान में
उछालती है
सजग रहती है
अपनी बाँहों में
थाम लेने

ना जाने क्यों
लगता है
तुम हो सजग
मेरे पथ का मेरे पहुंचने से पहले
निर्माण करती हुई

अब धीरे धीरे
पहले से अधिक
दृढ़ हो रही है मान्यता कि

मैं नहीं, तुम ही तुम
करती हो सब कुछ
मेरे लिए, मेरे द्वारा भी

ओर इस बोध कि निश्चिंत छाया में
देख कर
कृतज्ञता से
तुम्हारे व्योम से रूप को

भेजता हूँ
सारे जगत को
प्रेम के साथ
कल्याण की प्रार्थना
ताज़ी ताज़ी इस क्षण


अशोक व्यास
सोमवार, नवम्बर २३, ०९ सुबह ६ बज कर ५८ मिनट
नुयोर्क, अमेरिका



1 comment:

Amodi said...

Very impressive, PL write some more for MAA & Krishna. I m getting & writing by iPhone now from Jaipur to Mumbai . Waiting for flight. It's 12 noon, 2nd December. Love & jaishri Krishna .

सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...