अनुबंध जो होता है
अपने साथ
उसको लेकर
बन सकता है
पुल समुन्दर पर
उसके आधार पर
खड़ा हो सकता है महल जीवन का
आत्म-अनुबंध की जड़ों में
सींचा जाता है जब
समर्पण नदी का जल
उर्वरा भूमि मन की
करती है याद
सत्य समर्पित ऋषियों की साधना
घुल जाता है
बोध अनंत का पवन में
विराट की अंगड़ाई से
टूट जाता हर संशय
मौन
आनंद
आस्था
अतुलित प्रेम
मंगल कामनाएं
सम्भव हो जाता
दूर दूर तक देख पाना
वहाँ से परे भी
जहाँ
पहले यूँ लगता था
कि ख़त्म हो रहे हैं रास्ते
अशोक व्यास
शुक्रवार, नवम्बर २०, ०९
न्यू योर्क, सुबह ३:५८ पर
अमेरिका
अपने साथ
उसको लेकर
बन सकता है
पुल समुन्दर पर
उसके आधार पर
खड़ा हो सकता है महल जीवन का
आत्म-अनुबंध की जड़ों में
सींचा जाता है जब
समर्पण नदी का जल
उर्वरा भूमि मन की
करती है याद
सत्य समर्पित ऋषियों की साधना
घुल जाता है
बोध अनंत का पवन में
विराट की अंगड़ाई से
टूट जाता हर संशय
मौन
आनंद
आस्था
अतुलित प्रेम
मंगल कामनाएं
सम्भव हो जाता
दूर दूर तक देख पाना
वहाँ से परे भी
जहाँ
पहले यूँ लगता था
कि ख़त्म हो रहे हैं रास्ते
अशोक व्यास
शुक्रवार, नवम्बर २०, ०९
न्यू योर्क, सुबह ३:५८ पर
अमेरिका
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