Friday, November 6, 2009

जिससे बने है जग सुनहरा



बीज बन कर
चल उतर आ गोद में माँ की
जहाँ
टूटन भी पावन और है एक रास्ता विस्तार का

छुप छुपा ले
वो सभी, जिससे खरोंचें पड़ रही हैं
छोड़ अब तक जो हुआ
जो ना हुआ

बस आज इस क्षण जो भी है तू
साथ में उसको सहेजे
चल उतर आ गोद में माँ की

ले कर विश्राम उसकी गोद में
निश्चिंत होकर

माँ की हथेली में ही है
आश्वस्त करता एक वो स्पर्श
की
जिसकी छुअन से
लुप्त भय-चिंता सभी

ना डर खोने से कुछ भी

पा गया वात्सल्य तो
फिर से वही दृष्टि मिलेगी

जिससे बने है जग सुनहरा

फिर नयी ताजी हवा से खेल करता
दौड़ ले तू
सपनों की पगडंडियों पर

याद माँ की साथ रख कर
कसक सी होती नहीं टूटन
सीखने यह बात
जिससे हो मधुर, सुंदर हर एक क्षण


हर एक टूटन हो पावन
बीज बन कर
चल उतर आ गोद में माँ की

जहाँ
टूटन भी पावन और है एक रास्ता विस्तार का




अशोक व्यास
सुबह ५ बज कर १८ मिनट
न्यू यार्क
नवम्बर ६, ०९

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