Thursday, November 5, 2009

तुम्हारी पूर्णता का प्रमाण



हर क्षण
एक रचनात्मक चुनौती है
मान कर ऐसा
करने लगा प्रार्थना
की इस क्षण को अपना सुन्दरतम दे पाऊँ

और मुस्कुरा गया क्षण
भाव तुम्हारा पर्याप्त है

देखो मैं तो वैसे ही परिपूर्ण हूँ
खेल बस तुम्हारे भाव सजाने का है
रचनात्मकता किसी और के लिए नहीं
बस तुम्हारे लिए ही है

तुम नहीं जानते
मैं जानता हूँ
तुम कालातीत हो

रचनात्मक चुनौती
इस पहचान तक पहुँचने की ही है

मैं देखता हूँ
स्थितियों का नित्य- नूतन समायोजन
बनाता है
पहेलियाँ तुम्हारे लिए

झाँक झाँक कर अपने में
जा सकते हो पार हर बाधा के
बूझ सकते हो हर पहेली

जब जब
स्थिति के दबाव में
तुम अपने भीतर झांकना भूल जाते हो
प्यारे कालातीत
तुम मुझ अकिंचन काल के हाथों
हार जाते हो


काल से बात जारी रखते हुए
पूछ बैठा जब
मुझे हरा कर क्या मिलता है तुम्हे
हँस पड़ा काल

"लो भूल गए तुम
मैं तो लेन- देन से परे हूँ
मेरे लिए हानि लाभ

मैं तो बस हूँ
तुम्हारी सेवा में
तुम्हें करने और होने
का अवकाश देने के लिए

महत्व है बस ये जानने का
की तुम वह हो
जो हमेशा होता है"

3
शब्द जाल कहीं
कोई षडयंत्र तो नहीं किसी का?
यह सब जो सुन रहा हूँ मैं
काल से
कविता के झरोखे में बैठ कर

सत्य है क्या यह सब
या मनगढ़ंत कल्पना है
किससे पूछूं
सचमुच चिंतित था
कैसे पुष्टि करुँ अपने विस्तार की?

पुष्टि सृष्टि है
कह कर मुस्कुराया कोई
तुम भूल जाते हो
अब तक जितना भी जिए हो
उसमें भी
तुम्हारी साँसों से
होती रही है प्रकट
उपस्थिति अनंत की


जीवन की पुष्टि स्वयँ जीवन है

तुम्हारी पूर्णता का प्रमाण
स्वयं तुम ही हो

इसीलिए तो बार बार
आता है तुम्हारे द्वार
अलग अलग रूपों मे यह आग्रह
खेलते हुए रचनात्मक खेल
काल के साथ
याद रख कर
झांको- झांको अपने भीतर


बस यही
एक तरीका है
तुम्हारी जीत का

अशोक व्यास
नवम्बर , ०९
सुबह बज कर ३१ मिनट
न्यू यार्क
(गणेश रूप में मेरे नाम के शब्दों को समायोजित करने की श्रेय वेंकटेश जी को,
उनकी वेबसाइट www.myganesha.in)

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