१
हर क्षण
एक रचनात्मक चुनौती है
मान कर ऐसा
करने लगा प्रार्थना
की इस क्षण को अपना सुन्दरतम दे पाऊँ
और मुस्कुरा गया क्षण
भाव तुम्हारा पर्याप्त है
देखो मैं तो वैसे ही परिपूर्ण हूँ
खेल बस तुम्हारे भाव सजाने का है
रचनात्मकता किसी और के लिए नहीं
बस तुम्हारे लिए ही है
तुम नहीं जानते
मैं जानता हूँ
तुम कालातीत हो
रचनात्मक चुनौती
इस पहचान तक पहुँचने की ही है
मैं देखता हूँ
स्थितियों का नित्य- नूतन समायोजन
बनाता है
पहेलियाँ तुम्हारे लिए
झाँक झाँक कर अपने में
जा सकते हो पार हर बाधा के
बूझ सकते हो हर पहेली
जब जब
स्थिति के दबाव में
तुम अपने भीतर झांकना भूल जाते हो
ओ प्यारे कालातीत
तुम मुझ अकिंचन काल के हाथों
हार जाते हो
२
काल से बात जारी रखते हुए
पूछ बैठा जब
मुझे हरा कर क्या मिलता है तुम्हे
हँस पड़ा काल
"लो भूल गए तुम
मैं तो लेन- देन से परे हूँ
मेरे लिए न हानि न लाभ
मैं तो बस हूँ
तुम्हारी सेवा में
तुम्हें करने और होने
का अवकाश देने के लिए
महत्व है बस ये जानने का
की तुम वह हो
जो हमेशा होता है"
3
शब्द जाल कहीं
कोई षडयंत्र तो नहीं किसी का?
यह सब जो सुन रहा हूँ मैं
काल से
कविता के झरोखे में बैठ कर
सत्य है क्या यह सब
या मनगढ़ंत कल्पना है
किससे पूछूं
सचमुच चिंतित था
कैसे पुष्टि करुँ अपने विस्तार की?
४
पुष्टि सृष्टि है
कह कर मुस्कुराया कोई
तुम भूल जाते हो
अब तक जितना भी जिए हो
उसमें भी
तुम्हारी साँसों से
होती रही है प्रकट
उपस्थिति अनंत की
जीवन की पुष्टि स्वयँ जीवन है
तुम्हारी पूर्णता का प्रमाण
स्वयं तुम ही हो
इसीलिए तो बार बार
आता है तुम्हारे द्वार
अलग अलग रूपों मे यह आग्रह
खेलते हुए रचनात्मक खेल
काल के साथ
याद रख कर
झांको- झांको अपने भीतर
बस यही
एक तरीका है
तुम्हारी जीत का
अशोक व्यास
नवम्बर ५, ०९
सुबह ६ बज कर ३१ मिनट
न्यू यार्क
(गणेश रूप में मेरे नाम के शब्दों को समायोजित करने की श्रेय वेंकटेश जी को,
उनकी वेबसाइट www.myganesha.in)
हर क्षण
एक रचनात्मक चुनौती है
मान कर ऐसा
करने लगा प्रार्थना
की इस क्षण को अपना सुन्दरतम दे पाऊँ
और मुस्कुरा गया क्षण
भाव तुम्हारा पर्याप्त है
देखो मैं तो वैसे ही परिपूर्ण हूँ
खेल बस तुम्हारे भाव सजाने का है
रचनात्मकता किसी और के लिए नहीं
बस तुम्हारे लिए ही है
तुम नहीं जानते
मैं जानता हूँ
तुम कालातीत हो
रचनात्मक चुनौती
इस पहचान तक पहुँचने की ही है
मैं देखता हूँ
स्थितियों का नित्य- नूतन समायोजन
बनाता है
पहेलियाँ तुम्हारे लिए
झाँक झाँक कर अपने में
जा सकते हो पार हर बाधा के
बूझ सकते हो हर पहेली
जब जब
स्थिति के दबाव में
तुम अपने भीतर झांकना भूल जाते हो
ओ प्यारे कालातीत
तुम मुझ अकिंचन काल के हाथों
हार जाते हो
२
काल से बात जारी रखते हुए
पूछ बैठा जब
मुझे हरा कर क्या मिलता है तुम्हे
हँस पड़ा काल
"लो भूल गए तुम
मैं तो लेन- देन से परे हूँ
मेरे लिए न हानि न लाभ
मैं तो बस हूँ
तुम्हारी सेवा में
तुम्हें करने और होने
का अवकाश देने के लिए
महत्व है बस ये जानने का
की तुम वह हो
जो हमेशा होता है"
3
शब्द जाल कहीं
कोई षडयंत्र तो नहीं किसी का?
यह सब जो सुन रहा हूँ मैं
काल से
कविता के झरोखे में बैठ कर
सत्य है क्या यह सब
या मनगढ़ंत कल्पना है
किससे पूछूं
सचमुच चिंतित था
कैसे पुष्टि करुँ अपने विस्तार की?
४
पुष्टि सृष्टि है
कह कर मुस्कुराया कोई
तुम भूल जाते हो
अब तक जितना भी जिए हो
उसमें भी
तुम्हारी साँसों से
होती रही है प्रकट
उपस्थिति अनंत की
जीवन की पुष्टि स्वयँ जीवन है
तुम्हारी पूर्णता का प्रमाण
स्वयं तुम ही हो
इसीलिए तो बार बार
आता है तुम्हारे द्वार
अलग अलग रूपों मे यह आग्रह
खेलते हुए रचनात्मक खेल
काल के साथ
याद रख कर
झांको- झांको अपने भीतर
बस यही
एक तरीका है
तुम्हारी जीत का
अशोक व्यास
नवम्बर ५, ०९
सुबह ६ बज कर ३१ मिनट
न्यू यार्क
(गणेश रूप में मेरे नाम के शब्दों को समायोजित करने की श्रेय वेंकटेश जी को,
उनकी वेबसाइट www.myganesha.in)
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