Thursday, May 25, 2017


चल निश्छल निश्छल निश्छल चल 
तू दीन दुःखी का बन सम्बल 
बन पावन तू, मन भावन तू 
ज्योतिर्मय बन सुखप्रद शीतल 

चल निश्छल निश्छल निश्छल चल 
ो हिमगिरि सूत, तू गंगा जल 
रस प्रेम और आनंद बहा 
संतोष लुटा पथ उन्नत चल 

अशोक व्यास 
मई २०१७ 
न्यूयार्क, अमेरिका 

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