Sunday, June 14, 2015

चाहे वैसा न सही



उसके मुस्कुराते साये में थी शीतलता
 वो जैसे एक चलता - फिरता पीपल था
 आज भी बना तो है साथ उसका
 चाहे वैसा न सही, जैसा कल था 

२ 

वो सक्रिय रहा करता था निरंतर 
नित्य मुखरित, करूणा का स्वर 
कहाँ से पाता था वो स्नेह इतना 
जिसे लुटाया करता था सब पर 


- अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 

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