Tuesday, May 12, 2015

प्रभु रमन तेरे दरबार


प्रभु रमन तेरे दरबार 
मिले शांति और प्यार 
सांस संतुलन सहज सुलभ 
जाग्रत आनंद अपार 

प्रभु रमन तेरे दरबार 
मधुर मौन उपहार
 करूणामय रसधार 
अपनेपन का ज्वार 

ऐसे तुमने अपनाया 
अब मुझको सब स्वीकार
एक अनाम लय होता जिससे 
मुखरित स्व का सार 

अशोक व्यास 
(रचना स्थल - अरूणाचल आश्रम, न्यूयार्क )

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