Saturday, October 11, 2014

अमृत की बूंदों का स्वाद


प्रश्न ये सारे 

जीवन मृत्यु के 

अतीत से वर्तमान और भविष्य को जोड़ते सूत्र में 
अपने बारम्बार बदलते प्रतिबिम्ब देख कर उभरने वाले 

और 
यह प्रश्न 
जो प्रश्न उठाने के औचित्य पर भी 
प्रश्नवाचक चिन्ह लगाते हैं 

समझ में नहीं आता 
हम 
जिन जिन सतहों के बीच 
अपना स्थान बनाते हैं 
वहां वहां 
बंधे बंधे क्यूँ रह जाते हैं 


२ 

बात जब फिसलती है 
कृपा के आलोक में 

घर्षण रहित मन 
अपेक्षाओं के तराजू में 
तौलता है 
अमृत की बूंदों का स्वाद 

और 
 अनुग्रह बरखा में  
छूट जाता
 आशा - निराशा का खेल ,

मुक्त विस्तार में मगन
तन्मय मन 
सुनने सुनाने से परे
अनंत की महिमा
में रम जाता है 

अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 


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