Thursday, July 31, 2014

एक शिथिलता सी

 
यह क्या है 
एक शिथिलता सी 
निश्छल हो रहने अडौलपन में रमने 
चुप धरे रहने का मन 
 
इस ठोस सी चुप्पी में 
क्या नया रूप
 ढूंढ रहा है जीवन
या गति  साथ का 
हो रहा है मंथन 

यहाँ 
मैं भी खड़ा हूँ 
प्रवेश द्वार पर 
मेरा होना 
टंगा हुआ है 
जैसे  कगार पर 

शायद मौन में 
बन रहा हो 
अर्थयुक्त होने का गीत 
शायद 
मेरी अनुपस्थिति में ही 
प्रकट होता सार-संगीत 

यह निश्चलता 
यह जड़ता से पल 
शायद पुनर्व्यस्थित 
कर रहे 
भीतर की हलचल 
 
शायद इन पलों में 
जब मैं गढ़ा जा रहा हूँ 
रुके-रुके भी 
गंतव्य की और बढ़ा 
जा रहा हूँ 
शायद इस तरह 
आ पाऊंगा 
इस मुगालते के पार 
की मेरे किये से 
चल रहा है मेरा संसार 
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
जुलाई २०१४

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