कालजयी अज्ञेय जी को समर्पित
तो अब
नए सिरे से
खुल रही है यह बात
वो
सौंप गया है
परतों के पीछे एक सौगात
उसने
सूक्ष्म दृष्टि से दिखाई जो
सनातन संपर्क की बात
वो
आज भी आलोक - स्फूर्ति सहित
धरी है, उसके शब्दो के साथ
२
उसने जो देखा
जो भोगा
जैसे जैसे जाना
भारत वैभव
वो जिन जिन
प्रश्नो से जूझा
जिन जिन अवधारणाओं को
परिभाषित कर
जहां जहां
प्रकाश स्तम्भ लगा कर
स्पष्ट किया
पथ पीढ़ी का
वे आज
उसके जाने बाद भी
प्रकाशित करते हैं
हमारा पथ
वह
काल के प्रश्नों को समझते हुए
संस्कृति के महत्त्व हेतु
जिस
मूल्य बोध
नियति बोध
क्रीड़ा के भाव
गति बोध और
स्वाधीनता के बोध की
चर्चा कर रहा था
उसकी सार्थकता
दिनों दिन बढ़ती जा रही है
पर
हम उसे व्यक्तित्व और कृतित्व को
दिनों-दिन
सजावट की वस्तु बनाते
उसकी तस्वीर पर हार चढ़ाते
उसके चिंतन की नदी से बचते-बचाते
कहीं न कहीं
जाने-अनजाने नकार रहे हैं
अपनी आत्म-सम्पदा
और
अदृश्य कटोरा लिए
सजे - धजे वस्त्रों में
अपना दारिद्र्य छुपाते
जीवित होने का नाटक करते हुए
इसी नाटक को सत्य कह कर
पहुंचा रहे हैं
आने वाली पीढ़ी तक
३
वह नहीं है
पर
विदेशी प्रभाव में
अपनी भाषा और संस्कृति को
आस्था से देखने-अपनाने वाली
उसकी दृष्टि
अब भी
बचा सकती हैं हमें
बचने वाली सिर्फ देह नहीं होती
वह होता है
जो हम हैं
और जिसके होने को
पहचानना और मानना
यानि
अज्ञेय प्रदत्त
सृजन सीढ़ियों पर चढ़ते जाना
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ फरवरी २०१४
1 comment:
अज्ञेय के सृजन सोपान एक नये विश्व की ओर ले जाते हैं।
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