सृजन उसका है
मेरे लिए तो लक्ष्य है बस दरसन
दरसन उसका
जिससे होता है सृजन
२
निःशब्द, निस्पंद
पुलकित एकांत
उसकी मुस्कान से छलकी पूर्णता का भाव
अब तक
ज्यों का त्यों धरा है
मेरे चारों और
मेरे हिलने से
छिन्न-भिन्न हो सकता है
यह मौन का समन्वित राग
तो क्या
पूरी तरह निश्चल हो रहूँ
यह ऐसी गति अपनाऊं
कि
गत्यात्मकता और स्थिरता से परे
कालमुक्त प्रवाह में
तन्मय हो
जाऊं
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
११ फरवरी २०१३
1 comment:
काल में लय पा जाये जीवन..
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