मेरी दस्तक में अँधेरा क्यूँ था
जो ना मेरा, वही मेरा क्यूँ था
जहाँ पे भीड़ थी तन्हाई की
वहीं पे मेरा बसेरा क्यूँ था
वो तो नागिन सी नहीं थी लेकिन
सांस में मेरी सपेरा क्यूँ था
भला कहूँ की बुरा तू ही बता
मेरे अंदर तेरा डेरा क्यूँ था
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अब तो है एक दास्ताँ अपनी
पहले इतना तेरा- मेरा क्यूँ था
अब उजाला ही है हमराह मेरा
पहले ओझल ये सवेरा क्यों था
अब तो देखे से 'हद' सिमट जाए
पहले नज़रों में वो घेरा क्यूँ था
अशोक व्यास
(पहले चार शेर बरसों पुराने, अंतिम तीन आज आये
(२४ फरवरी २०१४, सोमवार, न्यूयार्क)
1 comment:
विश्व क्रम के गहरे सूत्र..
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