यदि आत्मीय दृष्टि से देखने का निरंतर हो अभ्यास
तो नहीं दिखे आम आदमी कोई, सब के सब हैं ख़ास
और अपने नाम से यदि कुछ सीखते प्रशांत भूषण
तो कभी न फैलाते खंडित विचारों का अशांत प्रदूषण
कथनी-करनी में साम्यता नहीं जिनके आस-पास
कैसे विश्वसनीय हो सकते हैं वो कुमार विश्वास
बिखर जाएँ तिनके झाड़ू के, तो बिखराव दिखाते हैं
गन्दगी दूर करने की बजाय, और गन्दगी बढ़ाते हैं
साफ़ हो या बदली छाया हो आसमान
अर्जुन की आँख से ही मिलेगा समाधान
तन्मयता से करना है लक्ष्य का अनुसंधान
सत्य का सम्मान से ही भारत रहे महान
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
लिखा १३ जनवरी २०१४
1 comment:
राजनीति में आकर देखो,
ढूँढ रहे हैं निर्मल राहें।
Post a Comment