Saturday, December 28, 2013
Monday, December 9, 2013
बदलते हुए रंग
और फिर
अपने भीतर
एक नए से स्थान में
देखता रहा वह
बदलते हुए रंग
धूप के नए नए आकार
तैरते रहे
फूलों के बगीचे पर
और फिर
आँगन में बारिश की छम छम
धीरे धीरे
भयावह थाप सुनाते
जगाने लगी
उदास तराने
तन्मय अपने आप में
समेट कर सारा कोलाहल
उसने कालातीत का दुशाला ओढ़ कर
छोड़ दिया
सीमाओं का जंगल
जिस क्षण
उस क्षण के मौन में
झांकी झलक अज्ञात अनाम की
नतमस्तक अनंत को
छोड़ते हुए
अपनी सीमित पहचान
अनायास ही
हो गया
एकमेक वह विस्तार के साथ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
९ दिसम्बर २०१३
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