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लिख लिख कर मिटाया
दिन खाली ही बिताया
पूर्णता से हाथ मिला कर
अपूर्णता से बच न पाया
जाने कहाँ खोया रास्ता
मैंने जब कदम बढ़ाया
लापता है कहीं मंजिल मेरी
बात कहते हुए मैं घबराया
२
दिन कटोरे सा हाथ में मेरे
फिर से मैया के द्वार पर आया
तू अगर सत्य नहीं है माँ तो
मेरा होना भी है छल की छाया
तेरी गोदी की ललक लेकर ही
सांस में सार रस उतर पाया
मुझको नहला - धुला मेरी माता
खेल सब छोड़ के मैं घर आया
बड़ा मूर्ख हूँ, कुछ नहीं जानूं
इतना जानूं हूँ, तू ने अपनाया
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१३ अक्टूबर २०१३
3 comments:
माँ का सत्य साथ है .....घट भरता ही जाता है पूर्णता से ....
सुंदर रचना .....विजयदशमी की शुभकामनायें ...!!
भक्ति की शक्ति का सच
बहुत सुन्दर |
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