१
बस इतना ही हुआ उसे देख कर
भूल गया और कुछ देखना
२
उसने पूछा जब मेरा नाम
तब
याद ही न आया
अपना नाम और पता
पता नहीं
क्या समझ होगा
मेरे बारे में उसने
३
एक एक पल
स्वप्निल सा
और चांदनी से नहाई
पगडंडी पर
जैसे
इठला कर
छेड़ दिया
राग नव जीवन का
उसके साथ ने
४
इस बार
बस ये सोच कर चला था
उसके साथ
की
सोचना नहीं
होना भर है
सूक्ष्म सतह पर
शुद्ध स्वरुप में
बिछ जाना है ऐसे
की
मेरे होने के
रेशे रेशे में
सम्माहित हो जाए उसका होना
५
इस बार
पलट कर लौटना नहीं
इस घर में
जहाँ बंधन है
जहाँ क्रंदन है
इस बार
उसके साथ चल कर
बस जाना है वहां
जहाँ नित्य
अनंत का अभिनन्दन है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
२० अक्टूबर २०१३
2 comments:
इस बार
उसके साथ चल कर
बस जाना है वहां
जहाँ नित्य
अनंत का अभिनन्दन है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |
नई पोस्ट मैं
अनंत का अभिनन्दन, आनन्दित करता उद्गीत।
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