Saturday, October 26, 2013

पुराने की परिधि पार



पुराने पन्नो से
 सहेजता हूँ 
अपने ही शब्द 
जो समय के साथ
 न जाने कहाँ से 
ले आते हैं नयापन
जो पुराने की परिधि पार 
जगमग करता है 
ना जाने कैसे 
अपने आप 

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 शिकायत नहीं 
स्वीकरण 
परमानन्द प्रदाता का 
वरन 
प्रसरित 
शुद्ध, मंगल भाव 
जाग्रत 
भावातीत का प्रभाव 

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मौन 
आश्वासन 
पूर्णता 
शांति 
उल्लास 
सहजता 
सौम्यता 
निश्छल प्रसन्नता 
रसमय धारा 
संक्षिप्त संवाद 
गूढ़ परत अनवारण 
एकाग्रता 
तन्मयता 
समर्पण 
साष्टांग दंडवत 
(रमण महर्षि जी की सन्निधि में १३ अगस्त २०१३ )
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अशोक व्यास 
न्यूयार्क, २६ अक्टूबर २ ० १ ३





सुंदर मौन की गाथा

   है कुछ बात दिखती नहीं जो  पर करती है असर  ऐसी की जो दीखता है  इसी से होता मुखर  है कुछ बात जिसे बनाने  बैठता दिन -...