पुराने पन्नो से
सहेजता हूँ
अपने ही शब्द
जो समय के साथ
न जाने कहाँ से
ले आते हैं नयापन
जो पुराने की परिधि पार
जगमग करता है
ना जाने कैसे
अपने आप
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शिकायत नहीं
स्वीकरण
परमानन्द प्रदाता का
वरन
प्रसरित
शुद्ध, मंगल भाव
जाग्रत
भावातीत का प्रभाव
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मौन
आश्वासन
पूर्णता
शांति
उल्लास
सहजता
सौम्यता
निश्छल प्रसन्नता
रसमय धारा
संक्षिप्त संवाद
गूढ़ परत अनवारण
एकाग्रता
तन्मयता
समर्पण
साष्टांग दंडवत
(रमण महर्षि जी की सन्निधि में १३ अगस्त २०१३ )
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अशोक व्यास
न्यूयार्क, २६ अक्टूबर २ ० १ ३
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शब्दशः समर्पण
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