१
और कुछ नहीं, बस तुकबंदी का खेल
शायद खेल खेल में हो ही जाए मेल
इधर उधर भागते ख्यालों को आखिर
पटरी पर ले आये शब्दों की रेल
२
अदृश्य हो गयी सपनो की रेल
चुकने लगा है दिए का तेल
विलीन अज्ञात लोक में लौ
करके तेज़ हवाओं से मेल
३
अब ये कौन सा तल है
जहाँ सब कुछ निर्मल है
सबके पार देख लेता मन
शुद्ध, सौम्य और शीतल है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
१४ - १५ अगस्त २०१३
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