१
बिना सोचे लिखते हुए
शब्द रश्मियाँ
दिखला देतीं
दिशाएं सोच की
अनाम पगडंडियों पर
भागती है
छाया जिसकी
वह मेरा क्या लगता है
सवाल निराकार
फुदकते मेमने से
ऊंची पहाडी पर
छलांग लगाते
आँखों से ओझल हो जाते
२
बिना सोचे
मैंने जाना है
सोचना समाधान तक
नहीं ले जाता हमेशा
कई बार
समस्या से छूटने का आग्रह छोड़ कर भी
छूट जाता है
एक कुछ
बेचैन करता हुआ
मुक्ति
कुछ से कुछ होने में नहीं
जो है
उसे देखने, अपनाने
और
सोच से रहित
सीमातीत का गीत
गुनगुनाने में है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
७ अप्रैल २ ३
3 comments:
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 9/4/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
bahut khoobsoorat aaklan hai
शब्दों को आने दो मन में।
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