Monday, March 4, 2013

ये जल्दी की कविता है


ये जल्दी की कविता है 
हड़बड़ी की कविता है 
यहाँ से वहां तक की दूरी 
इस अनुभव से उस अनुभव की यात्रा 
इस संवाद से उस विवाद और फिर इस संवाद तक 
जल्दी जल्दी 
निपटा लेना है 
चाय पीने-पिलाने का क्रम 
अब तय करना है 
अपनाते हुए कौन सा रास्ता 
गंतव्य तक जाना है 
किसके प्रति अपनी रुष्टता को जताना है 
बुरा लगने के भाव को कहाँ जाकर फेंक आना है 
 
२ 
ये जल्दी की कविता है 
क्योंकि दिन तो उग जाने वाला है जल्दी से 
पर उन्हें ही दिखाई देगा 
जिन्होंने खोल ली हों आँखें 
कविता में हडबडी है 
क्योंकी 
कविता जानती है 
देर तक यूं ही नहीं रहने वाला सूरज 
और यह भी की 
जो नहीं उठ पाते जल्दी 
जान ही नहीं पाते 
सूर्य लालिमा का सौंदर्य 
 
३ 
ये जल्दी की कविता है 
क्योंकि इस बार 
छुपा कर नहीं रखना उजाला 
न ही छुपे हुए उजाले की अनदेखी करनी है 
संगीत सारा 
सजा कर 
सागर की लहरों पर 
लीन कर लेना है 
सांसों के सहमे राग को 
असीम उल्लास के साथ 
 
४ 
 
ये कविता जल्दी की कविता है 
प्रतीक्षा अगले जन्म तक नहीं 
ना ही इस जन्म के अगले चरण तक 
अभी 
इसी क्षण समाप्त कर देना है 
यह प्रतीक्षा काल 
लपक कर पूरी कर लेनी है यह ललक 
मुक्त हो जाने की
 
 
अशोक व्यास 
न्यूयार्क,  अमेरिका 
४ मार्च २०१ ३ 

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

कविता तो अलसायी सी निकसती है और फैल जाती है जगत में।

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