व्यवस्थित होने के प्रयास में
वह
लिखता रहा है
कविता और
किसी सूक्ष्म, पावन, उदार,
अपार समन्वित भाव में
भीग कर
भूलता रहा है
अव्यस्थित होने की शिकायत
२
विस्मित सौंदर्य छलकाते
ऐसे ही
किसी अनाम, कोमल क्षण में
लगा है उसे
"जीवन कविता ही तो है
"जीवन कविता ही तो है
और
व्यवस्था जीवन की
होती है उजागर
कविता से ही "
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका ५ मार्च २० १ ३
2 comments:
srijansheelata ka vismaykari sukh ...
sahaj sundar satya .
प्रवाह ही कविता का पर्याय है।
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