(चित्र- बाबा सत्य नारायण मौर्य ) |
और बात कहाँ से निकलेगी
यह सोचते हुए
रुक कर
चुप्पी के मैदान में
ठिठक कर खडा वह
देख रहा था
अपने पांवों की नीचे
यह सोचते हुए
रुक कर
चुप्पी के मैदान में
ठिठक कर खडा वह
देख रहा था
अपने पांवों की नीचे
बर्फ की परत सा आधार
कब से चला आया हूँ इस तरह
अनिश्चय और अस्थिरता में
फिर भी
रोक लेता है कोइ
थाम लेता है कोइ
बार बार कैसे
यूं
दे देता है
आश्वासन और हौसला
बढ़ने का
और आगे बढ़ने का
इस बार
जब सपनो के संदूक की तरफ हाथ बढाते हुए
सहसा उसने महसूस किया
अब कोइ ले गया है
चुरा कर सपनो वाली संपदा
या शायद किसी कमजोर क्षण में
मैंने ही फिसल जाने दिया सपनो को
अपने हाथ से
ऐसे की जैसे मुझे पता ही न चले
उस क्षण का होना
जब मुझसे छूट कर अलग हो गए थे सपने
2
वह इस बार
अब
कर ही लेना चाहता था परीक्षण
ना जाने क्या है
इस पतली बर्फ से आधार के नीचे
यदि कूद कर
भाग कर
फिसलने की बाध्यता हो
या डूबने वाली स्थिति
पर अब
और नहीं चाहता
वह
इस तरह डर डर कर
एक एक पग खिसकना
3
अब
हो ही जाए
जो होना है मुझसे
उसने अपने रेशे रेशे में
आव्हान किया
अपने 'स्व' का
जगाए धमक अपने होने की
बिना छोड़े शांति यह
कब से चला आया हूँ इस तरह
अनिश्चय और अस्थिरता में
फिर भी
रोक लेता है कोइ
थाम लेता है कोइ
बार बार कैसे
यूं
दे देता है
आश्वासन और हौसला
बढ़ने का
और आगे बढ़ने का
इस बार
जब सपनो के संदूक की तरफ हाथ बढाते हुए
सहसा उसने महसूस किया
अब कोइ ले गया है
चुरा कर सपनो वाली संपदा
या शायद किसी कमजोर क्षण में
मैंने ही फिसल जाने दिया सपनो को
अपने हाथ से
ऐसे की जैसे मुझे पता ही न चले
उस क्षण का होना
जब मुझसे छूट कर अलग हो गए थे सपने
2
वह इस बार
अब
कर ही लेना चाहता था परीक्षण
ना जाने क्या है
इस पतली बर्फ से आधार के नीचे
यदि कूद कर
भाग कर
फिसलने की बाध्यता हो
या डूबने वाली स्थिति
पर अब
और नहीं चाहता
वह
इस तरह डर डर कर
एक एक पग खिसकना
3
अब
हो ही जाए
जो होना है मुझसे
उसने अपने रेशे रेशे में
आव्हान किया
अपने 'स्व' का
जगाए धमक अपने होने की
बिना छोड़े शांति यह
जो परिष्कार क्रांति की अंगड़ाई
उमड़ आई थी उसके भीतर
इस पर सूर्य का अलोक था
और विस्तृत होती आकाशगंगा की छाया
अब गति और विस्तार
दोनो की प्यास लिए
फैला दी उसने अपनी दोनों बाहें
'हाँ कर लेना है आलिंगन सारी सृष्टि का'
इसी से महिमा है उसकी
जिसने मुझे बनाया है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
22 जनवरी 2013
अब गति और विस्तार
दोनो की प्यास लिए
फैला दी उसने अपनी दोनों बाहें
'हाँ कर लेना है आलिंगन सारी सृष्टि का'
इसी से महिमा है उसकी
जिसने मुझे बनाया है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
22 जनवरी 2013
5 comments:
.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
sadhoo sadhoo
सुन्दर, भावमयी, प्रवाहमयी पंक्तियाँ..
बहुत बढ़िया....
उसने अपने रेशे रेशे में
आव्हान किया
अपने 'स्व' का
जगाए धमक अपने होने की
बिना छोड़े शांति यह
जो परिष्कार क्रांति की अंगड़ाई
उमड़ आई थी उसके भीतर
इस पर सूर्य का अलोक था ...
बेहतरीन रचना...
अनु
bahut badhia.....dil ko chhoo jane wali panktian hain......Nirpekshita
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