Tuesday, October 23, 2012

आज बस इतना समझ में आया


आज बस इतना समझ में आया 
की जो जो भी अब तक समझ पाया 
उससे कहीं अधिक हिस्सा ऐसा है 
जो देख कर भी देख न पाया, जान कर भी जान न पाया 
समझ के फैलाव हेतु विस्तृत क्षेत्र की झलक पाकर 
आज फिर कृतज्ञता से स्वयं को गुरुचरणों में नतमस्तक पाया 


उसने बरसों पहले कहा था 
 आवश्यक है शुद्ध, स्थिर और समर्पित मति 
तभी ब्रह्मनिष्ठ गुरु दे पायेंगे 
ब्रह्म ज्ञान में गति 

स्थिरता का अर्थ एक क्षण के लिए जब खुल पाया 
अज्ञात गुफा के भीतर का अपार कोष जगमगाया 

आज मुस्कुराया ये जान कर फिर एक बार 
की ठीक से समझने में बाधक है अहंकार 

देख कर अपने भीतर छुपा विस्तार 
अपनी सीमाओं पर भी हो आया प्यार 

आज बस इतना समझ में आया 
उसने ये खेल कितना अद्भुत बनाया 

कितनी कुशलता से झूठ को सच बताती है 
ये, जिसे हम कह देते हैं, उसकी माया 


अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
23 अक्टूबर 2012


2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जितना समझा, उतना जाना, कितना और अभी जाना है ।

सूर्यकान्त गुप्ता said...

पूरी जिंदगी बीत जाती है समझने में

फिर भी हम समझ नहीं हैं पाते

छूट जाता है जग सारा

रह जाते सब रिश्ते नाते .......सुन्दर रचना

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं

सहित ...............

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