प्रतिध्वनित होता है अर्थ
कैसे मुझसे तुम तक
तुमसे मुझ तक
पुल इस अंतर्ध्वनि का बनाता है
जो
वह तो परे है
ध्वनि से भी
द्रश्य और वाणी से परे का
वह विस्तार
सहज ही सूक्ष्म रूप में
बैठ जाता है
मेरी धडकनों पर
गाता है
कोई कालातीत गीत
जिसे सुन कर
छूट जाता है
मेरा सन्दर्भबद्ध परिचय
और यहाँ से
उमड़ती हैं
प्रीत की आलोकित रश्मियाँ
इनमें
घुल-मिल कर भी
कैसे बाहर आ जाता हूँ
अपने सीमित स्वरुप में
यह एक से अनंत तक की यात्रा
एक पहेली है
सुलझ कर उलझ जाती है
कभी सबके साथ एक
कर जाती है
कभी सबसे अलग-थलग
सारे जग को
मेरे लिए पराया बनाती है
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
2 अक्टूबर 2012
2 comments:
very nice
अनसुलझी सी पहेली सुलझाते हुए चल रहे हैं हम सभी ॥
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