ये सब
जो है साथ मेरा
उगते जाते हों
जैसे रसीले फल
ऐसी ये अनुभूतियाँ
इन्हें सहेज कर रख देने
पुकारता हूँ शब्द डगर पर
ये शाश्वत सखा
कर देते कृपा
प्रेम से धर लेने
अपने अंक में
मेरा यह आलोकवृत्त सा नूतन बोध
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मुक्ति वृक्ष हूँ में
यह चिर स्वतंत्रता प्रदायक
छाया लेकर
अपनी असीम जड़ों से जुड़ा
कभी कभी
अपनी ही छाया में
सुस्ताता हूँ
और अनंत का गौरव गाता हूँ
अशोक व्यास
न्यूयार्क, अमेरिका
15 अक्टूबर 2012
2 comments:
अलंकृत शब्द संयोजन
प्रकृति के माध्यम से व्यक्त अभिव्यक्ति
मन के भावों का सुन्दर चित्रण
अनंत और मुक्ति, दोनों ही आकर्षित करते हैं।
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