Monday, October 15, 2012

पुकारता हूँ शब्द डगर पर


ये सब 
जो है साथ मेरा 
उगते जाते हों 
जैसे रसीले फल 
ऐसी ये अनुभूतियाँ 
इन्हें सहेज कर रख देने 
पुकारता हूँ शब्द डगर पर 
ये शाश्वत सखा 
कर देते कृपा 
प्रेम से धर लेने 
अपने अंक में 
मेरा यह आलोकवृत्त सा नूतन बोध 

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मुक्ति वृक्ष हूँ में 
यह चिर स्वतंत्रता प्रदायक 
छाया लेकर 
अपनी असीम जड़ों से जुड़ा 
कभी कभी 
अपनी ही छाया में 
सुस्ताता हूँ 
और अनंत का गौरव गाता हूँ 



अशोक व्यास 
न्यूयार्क, अमेरिका 
15  अक्टूबर 2012

2 comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...

अलंकृत शब्द संयोजन

प्रकृति के माध्यम से व्यक्त अभिव्यक्ति

मन के भावों का सुन्दर चित्रण

प्रवीण पाण्डेय said...

अनंत और मुक्ति, दोनों ही आकर्षित करते हैं।

सुंदर मौन की गाथा

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